Thursday, 15 September 2011

आज के युवा देश का भविष्य, लेकिन हमारी युवा पीढी की मानसिकता पर आजकल की फिल्मे और गैरजरूरी विज्ञापन
कितना बुरा असर डाल रहे हैं ये सोचने का विषय है
कभी हमारे देश मे साफ सुथरी शिक्षाप्रद व मनोरजंक फिल्मो का निर्माण
होता था पर आजकल की फिल्मे परिवार के साथ देख पाना सभ्यता से परे होता जा रहा है
कुछ विज्ञापन उन उत्पादों के होते हैं जो छोटे बच्चों के ऐसे सवाल बनकर
सामने आ जाते हैं जिनका जवाब बडों के पास सिर झुका लेने अलावा कुछ नही होता व बालमन सिर्फ
असमजंस मे रह जाता है और युवाऔ के लिये हर तरह की पाबन्दी और डर से मुक्ति का साधन बन जाते हैं
कुछ विज्ञापन लोक सेवा आयोग दव्ारा जन हित मे प्रसारित होते हैं लेकिन क्या ये सच मे जनहित मे हैं या युवा पीढी के विनाश मे
आजकल जिस तरह हमारी युवा पीढी पश्चिमि सभ्यता मे रगंती जा
रही है उनके लिये तो इन विज्ञापनो मे दिखाये गये उत्पाद
हर तरह के डर से आजादी का साधन बन गये हैं इन उत्पादो के विज्ञापन प्रसारण के समय अगर परिवार एक साथ
बैठा हो तो शर्मिदंगी से सर झुक जाता है
एक विज्ञापन मे दिखाया जाता है कि अपने साथी के प्रति वफादार रहिये
समबन्ध 1 के साथ या फिर फंला उत्पाद के साथ मतलब
समबन्धो की नैतिकता समाप्त ,क्या हमारा सूचना प्रसारण मंत्रालय इस तरफ ध्यान ही नही देता
अगर मेरा ये सब लिखना कुछ अजीब व अनुचित लगे
तो मै क्षमाप्राथी हुँ ये मेरे अपने विचार हैं |

Sunday, 11 September 2011

भूख

मैले कुचैले फटेहाल कपडों में अपनेअधनगें बदन को ढांपने की असफल कोशिश करती हुई असहाय गरीब महिला अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ कचरेदान से कुछ बीनती हुई .. भूखसे बिलख रहे बच्चों को सांत्वना देती शायद इस कचरे के डब्बे से कुछ खाने को मिल जाये ताकि बच्चों की भूख शाँत कर सके ,
तभी रास्ते गुजरती भीड,जो कुछ नारे लगा रही थी, …जनलोकपाल लाऔ
भ्रष्टाचार भगाऔ …को देखकर कचरा बीनते हाथ ठहर से जाते हैं
बच्चे बडी मासूमियत से पूछते हैं मां क्या जनलोकपाल आने से
हमे खाना मिलेगा मां गहरी साँस लेकर जवाब देती …शायद मिल जाये
अगर ये बडे लोग उसकी भी कालाबाजारी नही कर देंगें तो
जवाब देकर वो फिर से कचरा बीनने मे मशगूल हो जाती है
क्योंकि उसे तो बस अपने मासूम बच्चों की पेट की आग
बुझानी है.

देश में बढती जनसंख्या और गिरता हुआ लिगं अनुपात


पहले से ही 2 बेटियों की माँ तीसरी बार जब माँ बनने वाली थी तो उसके पति और सास ने दबाव बनाया कि  वह भ्रूण का लिंग परीक्षण करवा ले क्योकि उन्हे तो वंश चलाने वाला चाहिये था ।
पर माँ की ममता इस बात के तैयार न होते हुए भी
अपनी आवाज दबाने पर मजबूर थी
क्योंकि सास के कटाक्ष और पति के शराब पीकर करी जानेवाली
पशुता के डर से बेचारी एकाँत मे बैठी अपनी ममता का
गला घोंटने की कोशिश करने लगी ।
तभी अपने अन्दर से मानो कोई आवाज  चित्कार
कर उठी माँ मैं भी तुम्हारा अंश हूँ मै भी इस संसार  में आना चाहती हूँ
तुम्हारी गोद में खेलना चाहती हूँ तुम्हारी ममता का अहसास करना चाहती हूँ

     हमारे देश में बढती जनसंख्या और गिरता हुआ लिगं
     अनुपात चिंता का विषय है।क्या हमारा समाज इस सच को कभी नही समझ सकेगा कि
अगर लडकियाँ नही होंगी तो वंश चलाने वाले लडकों का
असतित्व कहाँ से रहेगा क्योकि कुदरत ने दुनिया को चलाने के जो
नियम बनाये हैं उसमे पुरूष और स्त्री समान रूप से भागीदार हैं
    हम लोग देवी रूप में कन्या पूजन करते हैं फिर भी कन्या जन्म पर या तो
अफसोस करते है या अजन्मी कन्या का वध करने को तैयार हो जाते हैं
 पुत्रचाह रखने वाले यह भूल जाते हैं कि आज बेटियां भी माता-पिता
का नाम रोशन करने मे बेटों से कहीं आगे हैं
  लोगों के सामने तो हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि बालिका भी देश का भविष्य है पर क्या कभी सबने एकजुट प्रयास किया कि
हम कन्या भूण हत्या  
जैसे अमानवीय कृत्य को जड से उखाडने का सकंल्प लें।

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जब तक बने रहेंगे दहेज के दानव समाज के ठेकेदार
तब तक निश्चेतन बनी रहेगी अजन्मी कन्याऔ की पुकार
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